यह बहुधा पर्वतों पर पाया जाता है। भारतवर्ष में सफेद, भूरा और काले रंग का अभ्रक मिलता है। बिहार प्रांत में हजारीबाग और गिरिडीह तथा बंगाल में रानीगंज के आसपास कोयले की खानों के अंदर मिलता है। राजस्थान में चित्तौड़, भीलवाड़ा में भी इसकी खानें हैं। यह तह पर तह जमे हुए बड़े-बड़े स्थानों में पहाड़ों में मिलता है। साफ करके निकालने पर इसकी तह कांच की तरह निकलती है। इसके पत्र पारदर्शक, मृदु और सरलता से पृथक-पृथक किए जा सकते हैं। आयुर्वेद में इसकी गणना महारसों में की गई है। भस्म बनाने के लिए वज्राभ्रक ( काला अभ्रक ) काम में लिया जाता है। वज्राभ्रक में लोहे का अंश विशेष होने से इसकी भस्म बहुत गुणकारी होती है।
यह आयुर्वेद के ग्रंथानुसार व शास्त्रोक्त विधि के द्वारा तैयार की जाने वाली एक पूर्णतया आयुर्वेदिक भस्म है। इसके सेवन से प्रमेह, बवासीर, मूत्राघात, पथरी, वीर्य स्तंभन, पाण्डू, संग्रहणी, सन्निपात आदि दोष तो ठीक होते ही हैं। इसके अलावा भी यह अनेकों बिमारियों में आश्चर्यजनक रूप से फायदा करती है। जिसकी पूरी जानकारी नीचे दी गई है। तो आइऐ जानते हैं अभ्रक भस्म के फायदे | नुकसान | गुण और उपयोग तथा सेवन विधि के बारे में।
अभ्रक भस्म के फायदे व रोगानुसार अनुपान और सेवन विधि
1 – प्रमेह के लिए
अभ्रक भस्म को पीपल और हल्दी के चूर्ण में मिलाकर शहद के साथ सेवन करें।
सोना भस्म चौथाई रत्ती ( अथवा अर्क ) सितोपलादि चूर्ण या च्यवनप्राशावलेह में मिला न्यूनाधिक मात्रा में घी और शहद के साथ दें।
3 – धातु बढ़ाने के लिए
सोना और चांदी की भस्म चौथाई रत्ती या वर्क छोटी इलायची के चूर्ण और शहद या मक्खन के साथ दें।
4 – रक्तपित्त के लिए
अभ्रक भस्म को गुड़ या शक्कर और हरड़ का चूर्ण मिलाकर या इलायची का चूर्ण और चीनी मिलाकर दुर्वा-स्वरस के साथ देने से बहुत अच्छा लाभ होता है।
5 – बवासीर, पाण्डु और क्षय के लिए
दालचीनी, इलायची, नागकेसर, तेजपात, सोंठ, पीपर, मिर्च, आंवला, हरड़, बहेड़े का महीन चूर्ण चीनी या मिश्री मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से बवासीर, पाण्डु और क्षय में बहुत अच्छा लाभ होता है।
अभ्रक भस्म एक रत्ती को मकरध्वज आधी रत्ती के साथ मिलाकर मक्खन या मलाई के साथ देने से बहुत अच्छा लाभ होता है।
15 – हृदय रोग में
अभ्रक भस्म एक रत्ती को मोती पिष्टी एक रत्ती और अर्जुनछाल चूर्ण 4 रत्ती के साथ शहद के साथ सेवन कराएं कुछ ही दिनों में आपको आश्चर्यजनक रूप से लाभ देखने को मिलेगा।
16 – वातव्याधि के लिए
सोंठ, पुष्करमूल, भारङ्गी और असगंध का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ दें।
17 – पित्त प्रकोप में
दालचीनी, इलायची, तेजपात और नागकेसर का चूर्ण मिलाकर चीनी या मिश्री के साथ लेने से पित्त प्रकोप शांत होता है।
18 – कफ प्रकोप में
कायफल और पीप्पली के चूर्ण में शहद के साथ सेवन करने से कफ का प्रकोप शांत होता है।
चीनी, मिश्री और गाय के दूध के साथ सेवन करने से शरीर में बढ़ा हुआ ताप शांत होता है।
24 – पाण्डु, संग्रहणी और कुष्ठ के लिए
वायविडंग, त्रिकुटा और घी के साथ दो से चार रत्ती की मात्रा में अभ्रक भस्म का सेवन करने से इन सभी दोषों का नाश होता है।
25 – मिश्र अनुपान
अभ्रक भस्म अकेली तथा पूर्वोक्तानुमान के साथ जैसी दी जाती है, वैसे ही भस्मों के मिश्रण के साथ देने से अपूर्व लाभ करती है। जैसे
26 – प्रसूत और कफक्षय में
अभ्रक भस्म 4 रत्ती, सुवर्ण वर्क 1 रत्ती, दोनों की 6 पुड़िया बना, प्रातः- सायं दाडिमावलेह में मिलाकर देने से बहुत अच्छा लाभ होता है।
27 – कफक्षय, कामला, जीर्ण ज्वर तथा संग्रहणी पर
अभ्रक भस्म 3 रत्ती, कान्तलौह भस्म 3 रत्ती, और सोने का वर्क एक रत्ती- इनकी 6 पुड़िया बनाकर प्रातः सायं 1-1 पुड़िया दाडिमावलेह के साथ सेवन कराने से आश्चर्यजनक रूप से फायदा होता है।
28 – धातुक्षय और मधुमेह के लिए
एक रत्ती अभ्रक भस्म, एक रती कान्त लौह भस्म, 2 रत्ती शुद्ध शिलाजीत इनकी गोली बना प्रातः सायं दूध के साथ सेवन करें।
29 – सन्निपात, पाण्डु आदि पर
अभ्रक भस्म एक रत्ती, मौक्तिक भस्म एक रत्ती और 4 रत्ती गोरोचन मिला इन सबकी 6 पुड़िया बनाना और छह माशा दाडिमावलेह के साथ 1-1 पुड़िया प्रातः, दोपहर और शाम को देना। इससे ज्वर, खांसी, दमा, नकसीर, (नाक से खून गिरना) आदि में अपूर्व लाभ होता है और अति कमजोरी पर इसका उत्तम प्रभाव पड़ता है तथा क्षय, सन्निपात, पाण्डु, रक्तपित्त और पित्तज कास आदि में यह मिश्रण बहुत काम करता है। इसके अतिरिक्त आँव एवं खूनी बवासीर में भी यह मिश्रण रामबाण औषधि का काम करता है।
अभ्रक भस्म के फायदे, गुण और उपयोग | Abhrak Bhasma Benefits in Hindi
1 – अभ्रक भस्म अनेक रोगों को नष्ट करता है, देह को दृढ़ करता है एवं वीर्य बढ़ाता है। तरुणावस्था प्राप्त कराता है और संभोग (मैथुन) करने की शक्ति प्रदान करता है।
2 – राजयक्ष्मा, कफक्षय, बढ़ी हुई खांसी, उर:क्षत, कफ, दमा, धातुक्षय, विशेषकर मधुमेह, बहुमूत्र, बीसों प्रकार के प्रमेह, सोम रोग, शरीर का दुबलापन, प्रसूत रोग और अति कमजोरी, सूखी खाँसी, काली खाँसी, पाण्डु, दाह, नकसीर, जीर्ण ज्वर, संग्रहणी, शूल, गुल्म, आँव, अरुचि, अग्निमांद्य, अम्लपित्त, रक्तपित्त, कामला, खूनी अर्श (बवासीर), हृदय रोग, उन्माद, मृगी, मूत्रकृच्छ्र, पथरी तथा नेत्र रोगों में यह भस्म अत्यंत लाभदायक सिद्ध हुई है। यह रसायन और वाजीकरण भी है।
3 – त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) में जो दोष विशेष उल्बण अर्थात् बढ़े हुए हों, उन्हें शमित करने के लिए उचित अनुपान के साथ अभ्रक भस्म का सेवन करना चाहिए। उचित अनुपान के साथ सेवन करने से यह रामबाण औषधि का काम करती है।
4 – प्रमेह रोग में शिलाजीत के साथ अभ्रक भस्म का सेवन करें।
कुष्ठ तथा रक्त विकार में अभ्रक भस्म एक रत्ती, बावची चूर्ण चार रत्ती खदिरारिष्ट के साथ देने से बहुत अच्छा लाभ होता है।
उदर रोगों में कुमार्यासव के साथ ही इसका सेवन करना लाभदायक है।
5 – राजयक्ष्मा की प्रारंभिक अवस्था में भी जब रोगी कास और ज्वर से दुर्बल हो गया हो, उस अवस्था में प्रवाल पिष्टी, मृगश्रृङ्ग भस्म और गिलोय सत्व के साथ अभ्रक भस्म के नियमित सेवन से 80% लाभ होता देखा गया है।
6 – रक्ताणुओं की कमी से उत्पन्न पाण्डु और कमला पर अभ्रक भस्म को मंडूर भस्म और अमृतारिष्ट के साथ देने से बहुत अच्छा लाभ होता है।आजकल डॉक्टर लोग शरीर में रक्त की कमी की पूर्ति दूसरों के रक्त का इंजेक्शन देकर करते हैं, किंतु कभी-कभी इसके परिणाम भयंकर भी सिद्ध होते हैं। परंतु आयुर्वेद में गुडूची सत्त्व के साथ अभ्रक भस्म सेवन कराने से यह काम निरापद रूप से पूरा हो जाता है, अर्थात शरीर में खून की कमी दूर हो जाती है।
7 – संग्रहणी रोग में अभ्रक भस्म का सेवन कुटजावलेह के साथ करने से यह आँव रोग को समूल रूप से नष्ट कर शरीर को निरोग बना देती है।
8 – वातजन्य शूल ( दूषित वायु या गैस के कारण होने वाला दर्द ) में अभ्रक भस्म का सेवन शंख भस्म में मिलाकर अजवाइन अर्क के साथ करना परम उपयोगी माना गया है।
9 – श्वास रोग पुराना हो जाने पर रोगी बहुत कमजोर हो जाता है और बहुत खाँसने पर थोड़ा सा चिकना सफेद कफ निकलता है तथा थोड़ा सा भी परिश्रम करने से पसीना आ जाता है। ऐसी अवस्था में अभ्रक भस्म का सेवन पिप्पली चूर्ण के साथ मधु मिलाकर करना बहुत लाभदायक है अथवा एक तोला च्यवनप्राश चौथाई रत्ती स्वर्ण वर्क के साथ सेवन कराने से भी बहुत अच्छा लाभ होता है।
10 – सामान्य कास रोग में अधिक कफस्राव होने पर श्रृंङ्ग भस्म या वासावलेह के साथ तथा शुष्क कास रोग में प्रवाल पिष्टी, सितोपलादि चूर्ण तथा मक्खन या मधु के साथ इस भस्म का सेवन करने से आश्चर्यजनक रूप से फायदा होता है।
11 – आँव ( पेचिश ) में कुटजारिष्ट के साथ, मंदाग्नि में त्रिकटु ( सोंठ, पीपल, मिर्च ) चूर्ण के साथ तथा जीर्णज्वर में लघुवसन्तमालिनी रस के साथ अभ्रक भस्म विशेष लाभ करती है।
12 – रक्तार्श ( खूनी बवासीर ) पुराना हो जाने पर बार-बार रक्तस्राव होने लगता है। शरीर में थोड़ी भी रक्त उत्पन्न होने से रक्तस्राव होने लगता है। ऐसी अवस्था में अभ्रक भस्म शुक्ति पिष्टी के साथ देने से रक्तस्राव बंद हो जाता है।
13 – मानसिक दुर्बलता होने पर कार्य करने का उत्साह नष्ट हो जाता है या कम हो जाता है। चित्त में अत्याधिक चंचलता रहती है। रोगी निस्तेज, चिंता ग्रस्त और क्रोधी हो जाता है। ऐसी अवस्था में अभ्रक भस्म का सेवन मुक्ता पिष्टी के साथ करना बहुत अधिक लाभप्रद माना जाता है।
14 – मन्दाग्नि हो जाने से खाया हुआ अन्न ठीक तरह से नहीं पचता, जिससे शरीर में बल की वृद्धि नहीं होती। परिणाम यह होता है कि अपस्मार, उन्माद, स्मृतिनाश, अनिद्रा, चित्तचांचल्य, हिस्टीरिया आदि अनेक मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसी दशा में अभ्रक भस्म के सेवन से थोड़े ही दिनों में बल की वृद्धि होकर शरीर पुष्ट हो जाता है। ब्राह्मी चूर्ण के साथ अभ्रक भस्म का सेवन करना मानसिक रोगों में अत्यंत लाभदायक है।
15 – हृदय की दुर्बलता को नष्ट करने के लिए अभ्रक भस्म बहुत उपयोगी है। नागार्जुनाभ्र जो हृदय पुष्टि के लिए ही प्रसिद्ध है। इसके गुणों में सहस्रपुटी अभ्रक भस्म का ही विशेष प्रभाव है। अभ्रक भस्म हृदय को उत्तेजना देने वाली है, किंतु यह कर्पूर और कुचिला के समान हृदय को विशेष उत्तेजित नहीं करती। यह हृदय के स्नायु मंडल को सबल बनाकर हृदय में स्फूर्ति पैदा करती है। अभ्रक सहस्रपुटी 1-1 रत्ती को मधु में मिलाकर सेवन करने से हृदय रोग में आश्चर्यजनक रूप से फायदा होता है।
16 – पुरानी खाँसी, श्वास, दमा आदि रोगों में रोगी खाँसते-खाँसते या दमा के मारे परेशान हो जाता हो, श्वास नली या कंठ में क्षत ( घाव ) हो गया हो, ज्यादा खाँसने पर जरा सा सफेद चिकना कफ निकल पड़ता हो, रोगी पसीने से तर हो जाता हो- इन कारणों से दुर्बलता विशेष बढ़ गई हो तो अभ्रक भस्म पिप्पली चूर्ण और मिश्री की चासनी के साथ मिलाकर लेने से बहुत अच्छा लाभ करती है।
17 – चिरस्थाई ( बहुत दिनों का ) अम्लपित्त रोग में अनेक दवा करके थक गए हों, अनेक डॉक्टर या वैद्य, हकीम असाध्य कह कर छोड़ दिए हों, पेट में दर्द बना रहता हो, हर वक्त वमन ( उल्टी ) करने की इच्छा होती हो, कुछ खाते ही उल्टी हो जाए, उल्टी के साथ रक्त भी निकलता हो, तो ऐसी अवस्था में अभ्रक भस्म को अम्लपित्तान्तक लौह और शहद के साथ मिलाकर देने से बहुत शीघ्र लाभ होता है।
18 – प्रसूत रोग में देवदार्वादी क्वाथ अथवा दशमूल क्वाथ या दशमूलारिष्ट के साथ अभ्रक भस्म का सेवन लाभप्रद माना गया है।
19 – धातु क्षीणता की बीमारी में च्यवनप्राश और प्रवाल पिष्टी के साथ इसका सेवन करने से उत्तम लाभ होता है।
20 – अभ्रक भस्म योग वाही है अतः यह अपने साथ मिले हुए द्रव्यों के गुणों को बढ़ा देती है। पाचन विकार को नष्ट कर आँतों को सशक्त बनाने और रुचि उत्पन्न करने के लिए भी अभ्रक भस्म का मिश्रण देना अति उत्तम माना जाता है।
21 – संग्रहणी में अभ्रपर्पटी ( गगन पर्पटी ) उत्तम कार्य करती हैं। मलावरोध तथा संचित मल के विकारों के लिए अभ्रपर्पटी का प्रयोग महा फलदाई है।
22 – पाचक और रंजक पित्त की कमी होने पर यकृत विकार को दूर करने के लिए मण्डूर भस्म के साथ अभ्रक भस्म देना चाहिए।
23 – अरुचि, अम्लपित्त और पित्त की प्रबलता जैसे दोषों में कपर्दक भस्म और प्रवाल पिष्टी के साथ इसका प्रयोग करने से आश्चर्यजनक रूप से फायदा होता है।
24 – जिस स्त्री के बच्चे कमजोर पैदा होते हों, उस स्त्री को अभ्रक भस्म सितोपलादि चूर्ण में मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करावें तो गर्भस्थ बालक सुपुष्ट होकर पैदा होगा।
25 – अभ्रक भस्म रसायन और वृष्य होने के कारण इसका प्रभाव रस रक्तादि धातुओं पर बहुत अच्छा पड़ता है। शरीर में रक्ताणुओं की कमी हो जाने के कारण शरीर पीला हो जाता है। यह रोग अक्सर कच्ची उम्र में जिस स्त्री को बच्चा पैदा होता है, उसे होता है। इसके साथ-साथ ज्वर, शरीर में आलस्य, कमजोरी, मंदाग्नि आदि उपद्रव भी होते हैं। ऐसी दशा में अभ्रक भस्म कान्त लौह के साथ दें और ऊपर से दशमूल क्वाथ का अनुपान देने से बहुत अधिक लाभ होता है।
-औ. ग. ध. शा.
अभ्रक भस्म के परिचय और फायदों के बारे में तो आपने जान लिया आइए अब इस अत्यंत गुणकारी भस्म के बारे में और कई महत्वपूर्ण बातों को जानते हैं जैसे:-
अभ्रक के भेद, अभ्रक के लक्षण, अच्छे अभ्रक की पहचान, भस्म बनाने की विधि, अभ्रक भस्म की मात्रा, अनुपान और सेवन विधि, अभ्रक भस्म की कीमत, अभ्रक भस्म के नुकसान आदि।
अभ्रक भस्म के नुक़सान | abhrak bhasm ke Side effect
यह पूर्णतः आयुर्वेदिक औषधि है और आयुर्वेद सार संग्रह नामक ग्रंथ में भी इससे होने वाले किसी भी प्रकार के नुकसान का उल्लेख नहीं मिलता।
फिर भी अभ्रक भस्म का सेवन करने से पहले अपने नजदीकी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क अवश्य करें और अपनी प्रकृति तथा रोग की जांच के बाद ही इसका सेवन करें।
बच्चे और गर्भवती महिलाएं तथा स्तनपान कराने वाली महिलाएं बिना आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के इसका सेवन ना करें।
अभ्रक के भेद
आयुर्वेद के मतानुसार पनाक, दर्दूर, नाग और वज्राभ्रक भेद से अभ्रक चार प्रकार का होता है। इन्हें आग में डालने से जिस अभ्रक के पत्ते खिल जाए उसे “पनाक” और जो अभ्रक आग में डालने से मेंढक के समान ( टर्र-टर्र ) की आवाज करें उसे “दर्दूर” तथा जो अभ्रक आग में डालने से सांप की तरह फुफकार छोड़े उसे “नाग” एवं जो अभ्रक आग में डालने से अपना रूप नहीं बदले तथा आवाज भी ना करे उसे “वज्राभ्रक” कहते हैं वज्राभ्रक का ही विशेषतया उपयोग भस्म और रसायन आदि में किया जाता है।
वज्राभ्रक के लक्षण
यदञ्जन-निभं क्षिप्तं न बह्नौ विकृतिं व्रजेत् ।
बज्रसंज्ञं हि तद्योग्यमभ्रं सर्वत्र नेतरत् ।। – र. चि.
जो अभ्रक अंजन के समान काला हो और आग पर रखने से किसी तरह विकृत ना हो वही वज्राभ्रक है। यह सर्वत्र हितकारक होता है। भस्म बनाने के लिए यही अभ्रक काम में लेना उत्तम माना जाता है।
अंजन के समान कृष्णाभ्रक ( वज्राभ्रक ) वही होता है, जिसमें लोहांश अधिक हो अर्थात लोहे का अंश अधिक हो। अच्छा कृष्णाभ्रक हिमालय तथा पंजाब में कांगड़ा जिले के नूरपुर तहसील की खानों में मिलता है और उत्तर प्रदेश में अल्मोड़ा के आगे बाघेश्वर में भी कहीं कहीं पाया जाता है। कभी-कभी भूटान से भी है अभ्रक लाया जाता है।
यह भूगर्भ में शिरा-जाल की तरह मिलों तक पृथ्वी की गहराई में बिछा हुआ रहता है। अतः प्रारंभिक भाग को खोदकर निकाल लेने के बाद सूक्ष्म पत्र वाला अंजन के समान कृष्णवर्ण का जो अभ्रक का ढे़ला मिले वही ग्रहण करना उत्तम है।
इस अभ्रक में जो लोहे का अंश होता है, वह विद्युत या उल्कापात निकले हुए लोहे की जाति का है। इसलिए विद्युत लौह सदृश लोहे के संपर्क से ही इसका वज्राभ्रक नामांकन किया गया है।
अच्छे अभ्रक की पहचान
जो अभ्रक श्रेष्ठ कृष्णवर्ण का, छूने से चिकना और देखने में चमकदार ढ़ेले के रूप में हो तथा जिसके पत्र मोटे हों और वे सहज ही खुल जाते हों एवं जो तोल में भारी हो वह अभ्रक सबसे अच्छा माना जाता है।
अभ्रक की शोधन विधि
काले रंग के पत्थर रहित और वजनदार अभ्रक के ढेले लाकर छोटे-छोटे टुकड़े कर उसको अग्नि में तपा तपा कर खूब लाल हो जाने पर गोमूत्र, त्रिफला क्वाथ तथा गाय के दूध में 7 बार बुझावें, उसके बाद जल से अच्छी तरह धोकर, सुखाकर, इमामदस्ते में कूटकर कपड़छान चूर्ण बनाकर रख लें।
-सि. यो. सं.
वक्तव्य
शुद्ध किए अभ्रक को दो-तीन दिन जल में डालकर पड़ा रहने के बाद धोना विशेष रूप से अच्छा रहता है।
ऊपर बताई गई शोधन विधि के अलावा भी अभ्रक को अन्य कई विधियों के द्वारा शुद्ध किया जाता है। जिसका वर्णन हमारे आयुर्वेद के ग्रंथों में मिलता है। आयुर्वेद सार संग्रह में भी कई तरह की शोधन विधि का उल्लेख किया गया है।
नोट- अभ्रक भस्म एक साथ 40 से 60 तोले तक बनावें तो यह बहुत अच्छी भस्म बनकर तैयार होती है।
अभ्रक भस्म मुख्यतः तीन प्रकार की होती है।
अभ्रक भस्म 60 पुटी
अभ्रक भस्म शतपुटी
अभ्रक भस्म सहस्रपुटी
अभ्रक भस्म 60 पुटी
शुद्ध अभ्रक को नागरमोथा के रस में खरल कर टिकिया बना करके सुखा लें। खूब सुख जाने पर टिकिया को सराब सम्पुट में बंद कर गजपुट में फूँक दें। इस प्रकार नागरमोथा के रस में 30 पुट दें। फिर अभ्रक का जितना तोल हो, उसका 16वाँ भाग सुहागा मिलाकर 30 पुट चौलाई के रस की दें। इस प्रकार 30 पुट देने से अभ्रक की सिंदूर के समान लाल भस्म तैयार हो जाती है। यह भस्म कुष्ठ क्षयादिक रोगों को नष्ट करती है।
अभ्रक भस्म शतपुटी
धान्याभ्रक को कसौंदी के पत्ते के रस में 12 घंटे खरल कर टिकिया बना, धूप में सुखा लें। सूखने पर सराब सम्पुट में रखकर गजपुट में फूँक दें। यह 1 पुट हुई, इस प्रकार और 99 पुट कसौंदी के पत्तों के रस में घोंटकर गजपुट देते जाएं, इस प्रकार 100 पुट होते ही निश्चन्द्र अभ्रक भस्म तैयार हो जाएगी।
-चि. चं.
दूसरी विधि
उपरोक्त तैयार अभ्रक अर्क दुग्ध (अभाव में अर्कपत्र स्वरस) की भावना देकर सौ पुट देने से अभ्रक भस्म शतपुटी तैयार हो जाती है।
अभ्रक भस्म सहस्रपुटी
उपरोक्त तैयार अभ्रकभस्म को अर्क दुग्ध दूध (अभाव में अर्कपत्र स्वरस) की भावना देकर एक हजार बार पुट देने से अभ्रक सहस्र पुटी तैयार हो जाती है।
अभ्रक भस्म सहस्रपुटी
निश्चन्द्र धान्याभ्रक को लेकर निम्नलिखित वनस्पतियों में से जैसे-जैसे जो जो दवाइयां मिलती जाएं प्रत्येक की 1616 भावना दें, यह ध्यान रखें कि प्रति भावना के बाद टिकिया बनाकर खूब सुखा लें तब सराब सम्पुट में बंद करके गजपुट में फूँक दें। रेचक, तीक्ष्ण तथा लेखन औषधियों की भावना लिखित मात्रा से ज्यादा न दें। भावना द्रव्य निम्न हैं।
थूहर का दूध, बट का दूध या जटा का क्वाथ, आक का दूध या पत्र का स्वरस, घीकुमारी (ग्वारपाठा) का रस, अण्डी की जड़ का क्वाथ, कुटकी का क्वाथ, नागरमोथा का क्वाथ, गिलोय (गुर्च) का क्वाथ, भांँग का रस, गोखरू का क्वाथ, कटेरी का क्वाथ, शालिपर्णी का क्वाथ, पृश्निपर्णी का क्वाथ, ग्रंथिपर्ण, सरसों का स्वरस, चिरचिटा (अपामार्ग) का क्वाथ, बड़ के अंकुर, बकरी का रक्त, बेल छाल का क्वाथ, अरणी का क्वाथ, चित्रक का क्वाथ, तेंदू का क्वाथ, हरड़ का क्वाथ, पाटल की जड़ का क्वाथ, गोमूत्र, आंवले का क्वाथ, बहेड़े का क्वाथ, जलकुम्भी का स्वरस, तालीसपत्र का क्वाथ, मूसली का क्वाथ, अडूसा (वासक) क्वाथ या रस, असगंध का क्वाथ, अगस्ति का रस, भांगरा, करेले का रस, अदरक का रस, सप्तवर्ण (सतौना) का क्वाथ, धतूरे का रस, लोध का क्वाथ, देवदारू का क्वाथ, तुलसी का रस या क्वाथ, सफेद और हरी दूब का रस या क्वाथ, कसौंदी का रस या क्वाथ, मरिच का क्वाथ, अनार की छाल का रस, काकमाची (मकोय) का रस, शङ्गपुष्पी का क्वाथ, तगर का क्वाथ, पान का रस, पुनर्नवा का क्वाथ, मण्डूकपर्णी (ब्राह्मी) का क्वाथ, इन्द्रायण का क्वाथ, भारङ्गी का क्वाथ, देवदाली (बन्दाल) का क्वाथ, कैथ का क्वाथ, शिवलिंगी, कड़वा पटोल, पलाश (ढाक), तुरई का क्वाथ, मूषाकपर्णी का क्वाथ, अनन्तमूल का क्वाथ, मछेछी का क्वाथ, कलौंजी का क्वाथ, तेलपर्णी ( कोई-कोई इसे औषधि विषेश कहते हैं) का क्वाथ, दन्ती और हरी शतावरी – इन सब के रस का क्वाथ लें।
-र. रा. सु.
अभ्रक भस्म की मात्रा, अनुपान और सेवन विधि
एक से दो रत्ती की मात्रा सुबह-शाम रोगानुसार अनुपान के साथ देने से अथवा शहद के साथ सेवन करने से आश्चर्यजनक रूप से लाभ मिलता है।
अभ्रक भस्म की कीमत | abhrak bhasma price
अभ्रक भस्म बिना डॉक्टर की पर्ची के मिलने वाली एक पूर्णतः आयुर्वेदिक औषधि है। इसे आप बड़ी आसानी से ऑफलाइन और ऑनलाइन अमेजॉन आदि से खरीद सकते हैं।
बैद्यनाथ अभ्रक भस्म शतपुटी की कीमत, 2.5 ग्राम -167₹ है।
बैद्यनाथ अभ्रक भस्म सहस्रपुटी की कीमत, 1 ग्राम – 401₹ है।
ऊपर बताई गई दोनों ही कीमतें 1mg की वेबसाइट पर दर्शाई गई हैं।
डाबर अभ्रक भस्म शतपुटी की कीमत, 2.5 ग्राम – 150₹ है।
विशेष नोट –
अगर आप भी प्रमेह, रक्तपित्त, अम्लपित्त, ज्वर, पुरानी खांसी, बवासीर खूनी व बादी, वीर्य विकार, यौन कमजोरी, हृदय की कमजोरी, मूत्राघात, पाण्डु आदि रोगों से पीड़ित हैं और बहुत जगह से इलाज करा कर देख चुके हैं और कहीं से भी आराम नहीं आ रहा तो आज ही हमारे अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें। हमारा पता है अनंत क्लीनिक मेन झज्जर रोड़, बहादुरगढ़, हरियाणा। आप हमें कॉल ( 7277270004 ) भी कर सकते हैं।
संदर्भ:- आयुर्वेद-सारसंग्रह श्री बैद्यनाथ भवन लि. पृ. सं. 98 से 108
Very good bahut achhi jankari hai