परिचय
ताँबे के बर्तन में पानी तो आप सब ने पिया होगा लेकिन क्या आप जानते हैं, इसी तांबे से ताम्र भस्म भी बनाई जाती है जो पूर्णत: आयुर्वेदिक और अनेक रोगों में उपयोगी जैसे- उदर रोग, प्रमेह, अजीर्ण, विषमज्वर, सन्निपात, कफोदर, प्लीहोदर, यकृत् विकार, परिणामशूल, हिचकी, अफरा, अतिसार, संग्रहणी, पांडू, मांसांर्बुद, गुल्म, कुष्ठ, कृमि रोग, हैजा, अम्लपित्त, प्लेग आदि में ताम्र भस्म एक महा औषधि है। अनेक रस-रसायन औषधियाँ इसके योग से बनाई जाती हैं। यह अत्यंत शक्तिवर्ध्दक, रुचिकारक और कामोद्दीपक है।
तो आइए जानते हैं ताम्र भस्म कैसे बनाई जाती है और ताम्र भस्म के फायदे, नुकसान और सेवन विधि के बारे में।
ताम्र भस्म के फायदे गुण और उपयोग : Tamra bhasma uses in Hindi
ताम्र भस्म पित्त की विकृति के कारण होने वाले दर्द को भी शांत करती है।
अलग-अलग बीमारियों में ताम्र भस्म के फायदे और सेवन विधि : Tamra bhasma benefits in Hindi
जलोदर में
हैजा में
अम्लपित्त में
शरीर में रक्त बढ़ाने के लिए
मन्दाग्नि में
कफज तथा वातज प्रमेह में
अजीर्ण अर्थात बदहजमी में
कफ प्रधान सन्निपात मे
सब प्रकार के शूलों ( दर्दों ) मेंं
हिक्का और हिचकी में
आमातिसार में
पांडू अर्थात पीलिया रोग में
कृमि रोग में
यकृत दाह (जलन) में
ताम्र भस्म के नुकसान : Tamra bhasma ke nuksan,
Tamra Bhasma Side Effect in Hindi
ताम्र भस्म की परीक्षा-विधि
ताम्र के नेपाल और म्लेच्छ ये दो भेद हैं। इनमें नेपाल संज्ञक ताम्र श्रेष्ठ होता है। यही भस्मादिक काम के लिए भी लिया जाता है। इसका विशिष्ट गुरुत्व 8 है तथा 1080 शतांश तापमान पर यह पिघल जाता है। ताप और विद्युत् की दाहकता में चाँदी के बाद ताम्र आता है।
नेपाली ताम्र के लक्षण
जो ताम्र, चिकना,भारी, लाल वर्ण, कोमल, चोट मारने पर चूर्ण न होकर बढ़ता हो वह नेपाली ताम्र है। ( और पढ़ें- हृदय की कमजोरी, मानसिक कमजोरी तथा यौन कमजोरी में अकीक भस्म के फायदे और सेवन विधि )
म्लेच्छ ताम्र के लक्षण
जो ताम्र सफेद या कृष्ण (काला) तथा थोड़ा-थोड़ा लाल हो और अत्यंत कठोर हो, खूब साफ करने पर भी काला ही बना रहे, यह म्लेच्छ संज्ञक ताम्र है। भस्मादिक कार्य में इसे नहीं लेना चाहिए।
भस्म के लिए यदि इससे भी उत्तम ताम्र लेना हो, तो तूतिया से तांँबा निम्नलिखित विधि से निकाल कर भस्म करें अथवा बिजली के तारों को जलाकर साफ करके उनकी भस्म बनावें। पुराने नेपाली पैसे भी उत्तम ताम्र के बने होते हैं। पुराने वैद्य उनको भी भस्म बनाने के काम में लेते हैं।
तूतिया से तांँबा निकालने की विधि
2 सेर तूतिया को पीसकर एक साथ लोहे की छोटी कड़ाही में बिछा दें और उस लोहे की कड़ाही को एक बड़े लोहे की कड़ाही में रख दें, फिर उस कड़ाही में पड़े हुए तूतिया को ढक दें। बाद में उस कड़ाही में 10 सेर मोटा कुटा हुआ त्रिफला चूर्ण और पक्का 1 मन पानी डालकर कड़ाही को खुली जगह में रख दें। जिससे सूर्य की किरणें और चंद्रमा की चांदनी बराबर कड़ाही में पड़ती रहे। इस तरह 2 महीने तक लगातार छोड़ दें। बाद में पानी छान लें। यह पानी स्याही (लिखने) के काम में आएगा और छोटी कड़ाही को बाहर निकाल कर उसके पेंदे में जमे हुए विशुद्ध तांँबे के चूर्ण को चाकू से खुरच कर निकाल लें। इसमेें करीब 40 तोला विशुद्ध तांँबा आपको मिलेगा। यह ताँबा नेपाली तांबे से भी ज्यादा उत्तम होगा।
-र. सा.
ताम्र शोधन विधि
उपरोक्त विधि से तूतिया से निकाले हुए तांबे को अथवा बिजली के तारों से निकाले ताम्र को अग्नि में खूब लाल करके आक के पत्तों के स्वरस में सात बार बझावें। फिर दो सेर इमली के पत्तों को 10 सेर पानी में उबालकर 5 सेर शेष रहने पर उतारकर छान लें। इस 5 सेर काढ़े में सेंधा नमक आधा सेर और उपरोक्त तांबा आधा सेर डालकर चार पहर तक आंँच दें। यदि पानी जल जाए तो बीच में गोमूत्र डालते जाएं। यदि गोमूत्र नहीं मिले तो पानी से भी काम चल सकता है इस ताम्र की इतनी शुद्धि ही पर्याप्त है। क्योंकि इस ताम्र में नेपाली ताम्र जैसा दोष नहीं रहता है। इस क्रिया से ताँबा शुद्ध हो जाता है।
दूसरी विधि
नेपाली तांँबे के पत्रों को लेकर आग में तपाकर तेल, तक्र, गोमूत्र, कांजी और कुलथी के क्वाथ में दो-तीन बार बुझाने से तांबा शुद्ध हो जाता है। ( और पढ़ें- प्रमेह, रसौली, सूजन, नेत्र रोग तथा यौन रोगों में यशद भस्म के फायदे नुकसान और सेवन विधि।)
ताम्र भस्म बनाने की विधि
हिंगुलोत्थ पारद 1 तोला और शुद्ध गंधक 2 तोला की कज्जली बना कर नींबू के रस में मर्दन कर शुद्ध ताम्र-पत्रों पर लेप कर, सूखा, संपुट में बंद कर, संपुट की संधि को कपड़मिट्टी से संधि बंद कर, धूप में सूखने दें। फिर हल्के पुट (अर्धगजपुट) की आंच में फूँक दें। ठण्डा होने पर ताम्र को निकाल, उसमें सम भाग, शुद्ध गंधक का चूर्ण मिला, नींबू के रस में घोंटकर, टिकिया बनाकर ऊपर बताई गई विधि से पुनः पुट दें। इस प्रकार दो पुट देकर भस्म को एक काँच के पात्र में डालकर ऊपर से खट्टे नींबू का रस देकर एक दिन-रात रहने दें। दूसरे दिन देखें यदि नींबू के रस में हरापन नहीं आया हो, तो भस्म ठीक हो गई है, ऐसा समझकर उसको काम में लावें। यदि नींबू के रस में हरापन आ जाए तो समभाग गन्धक के साथ नींबू के रस में ऊपर बताई गई विधि से घोंटकर एक पुट और दे दें। परन्तु इस बार आँच पहले से भी कम दें। बाद में ऊपर बताई गई विधि से दोबारा परीक्षा कर लें। ताँबे की भस्म एक साथ में आधा सेर तक ही बनाएं।
-सि. यो. सं.
दूसरी विधि
तांबे के तारों को शोधन विधि से शुद्ध करें, बाद में बराबर सेंधा नमक और गंधक मिलाकर नींबू या इमली रस से घोंटकर टिकिया बना, सुखाकर पुट दें। तीन-चार पुट देने के बाद पिसाई कराकर बर्तन पर कपड़ा बांध कर उस पर थोड़ी-थोड़ी भस्म और पानी डालकर हाथ से चलाकर छानते जाएं। इस प्रकार सारी भस्म को छान लें। पश्चात तीन-चार घंटे पड़ा रहने दें। बाद में पानी निथार कर अलग कर दें। जब तक हरा तथा खराब स्वाद का पानी निकलता रहे, तब तक धुलाई होनी चाहिए। अर्थात भस्म के पात्र में पानी डालकर उसे चलाकर तीन-चार घंटे पड़ा रखकर पानी निथार कर अलग करते रहना चाहिए। काफी धुलाई करने पर भी यदि स्वाद ठीक ना हो तथा वान्ति-भ्रांति का दोष दूर ना हो, तो भस्म में खट्टी दही मिलाकर 3 दिन रखें, बाद में पानी डालकर उपरोक्त प्रकार से तीन चार बार धुलाई करने से उपरोक्त दोष भी ठीक हो जाएगा तथा भस्म नि: स्वाद भी हो जाएगी। स्वाद रहित होने पर भस्म के तेैल से अष्टमांश मीठा तेल देकर मंद आंँच में भट्ठी पर पकावें। भर्जन होने पर अच्छी तरह घिसाई करा महीन कपड़े से छानकर कांच या चीनी मिट्टी के पात्र में रख लें।
हर बार पुटान्त में अच्छी घुटाई होना आवश्यक है। पुट में आँच मन्दी देनी चाहिए अन्यथा तांँबे के डाले बाँध झारेंगे।
-र. सा. सं. के आधार पर स्वानुभूत विधि।
सोमनाथी ताम्र भस्म
मात्रा और अनुपान
ताम्र भस्म की कीमत