भोजन क्या है
वे सभी पदार्थ या ऐसा कोई भी पदार्थ जो वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट अर्थात शर्करा, जल आदि के मिश्रण से बना हो और जीवों के ग्रहण करने लायक हो और जो सभी जीवों द्वारा ग्रहण किया जाता हो, उसे ही भोजन कहते हैं।
संसार में सभी जीव न केवल जीने के लिए बल्कि स्वस्थ और सक्रिय जीवन बिताने के लिए भोजन करते हैं। भोजन से जीव मात्र को अनेकों पोषक तत्व मिलते हैं। जिनसे शरीर को स्वस्थ बनाए रखन में मदद मिलती है तथा यही पोषक तत्व शरीर को शक्ति प्रदान करते हैं भोजन एक त्वरित ऊर्जा का स्रोत है।
आहार अर्थात भोजन का प्रयोजन
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए उचित आहार का सेवन महत्वपूर्ण बात मानी गई है। आहार का प्रयोजन स्वास्थ्य और संस्कार दोनों के लिए है। कहने का मतलब हमारे आहार से हमारा स्वास्थ्य और हमारे संस्कार दोनों जुड़े हुए हैं। वह कहावत तो आप सबने सुनी होगी “जैसा खाए अन्न वैसा होए मन” यह कहावत भी इसी बात को दर्शाती है। इस प्रयोजन को सिद्ध करने का दायित्व अब तक घर की महिलाओं द्वारा सफलतापूर्वक निभाया जाता रहा है, परंतु पिछले पांच सात दशकों में इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा मात्रा में उथल-पुथल हो रही है। फेरबदल हो रही है। परिणाम स्वरूप स्वास्थ्य और संस्कार दोनों की ही बड़ी हानि हुई है। इस स्थिति में सुधार करने हेतु बहुत अधिक प्रयास की आवश्यकता है। श्री मणिराम शर्मा द्वारा लगभग 8 दशक पूर्व लिखे गए ‘पाकचंद्रिका’ नामक ग्रंथ के इस लेख में इस दिशा को सुधारने के लिए कुछ बातें कही गई है जो आप सब को जाननी चाहिए।
bhojan kya hai |
इस मृत्युलोक में उत्पन्न होकर प्राणी मात्र को ही आहार की आवश्यकता पड़ती है जीव मात्र ही आहार के ऊपर निर्भर करता है। इसलिए मनुष्य को समझना चाहिए कि पहला सुख निरोगी काया यह तो आप सभी जानते ही हैं अतः आहार ही जीव मात्र के स्वच्छंद सुख का मूल है। अतएव इसी आहार से वर्ण, बल, तेज और सब प्रकार के मानसिक व्यापार आदि को सहायता मिलती है। यहां तक कि इसी के ऊपर जीवन भी निर्भर है, इसलिए इस आहार को सुंदर, स्वच्छ, सुस्वादु और पौष्टिक बनाकर भोजन करना चाहिए।
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हमारे पूर्व आचार्यों ने इस आहार के ग्रुरुतर भार को घर की महिलाओं के हाथ में रखना निश्चित किया है। तभी पूर्व काल से ही घरों में भोजन बनाने का कार्य स्त्रियों के हाथों में ही रहा है। परंतु दुःख का विषय है कि आजकल की गृहस्थ स्त्रियों में 100 में से मुश्किल से 10-5 ही इस प्रधान पाक विद्या ( भोजन बनाने की कला ) का पूर्ण ज्ञान रखती होंगी वैसे तो रसोई बनाना सभी जानती हैं रोजाना बनाती भी हैं, परंतु भोजन कैसा होना चाहिए, किस ऋतु में कैसे भोजन की आवश्यकता है। यह सब ज्ञान उनमें नहीं है इसका कारण क्या है? अविद्या, भोजन की शिक्षा की कमी का होना।
इसके अलावा आजकल की महिलाओं में आलस की उत्पत्ति होना भी एक बहुत बड़ा कारण है आलस्य वश स्वयं खाना ना बनाकर किसी खाना बनाने वाली अथवा खाना बनाने वाले को रसोई के लिए वह नौकर रख लेती हैं। यह बहुत ही खतरनाक बात है।
जरा विचार करें कि यह कितने दुःख और चिंता की बात है, की जिस आहार पर हमारा जीवन निर्भर है उसी आहार को बनाने का काम हम दूसरों के हाथों में सौंप देते हैं और नतीजा कभी-कभी हमें अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता है। इस प्रकार की अनेकों घटनाएं आपको अपने आसपास मिल जायेंगी।
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इसलिए आप सभी से अनुरोध है कि अब भी आप लोग सावधान हो जाएं आप यह न सोचे कि हम धनवान हैं हमारे रसोई बनाने से हमारी इज्जत में फर्क पड़ जाएगा या लोग क्या कहेंगे भला इस बात पर भी विचार कर के तो देखें कि पूर्व की स्त्रियां क्या हम लोगों से कम धनी थी ? हमसे तो उनका गौरव कहीं अधिक था पूर्व काल की स्त्रियां हर बात में हम से अधिक गौरवान्वित थी।
जैसे माता सीता, सावित्री, दमयंती, सत्यभामा, द्रोपती आदि पूजनीय नारी कुल शिरोमणि राजराजेश्वरी होकर भी स्वयं अपने हाथों से भोजन बनाकर अपने परिवार जनों को अपने हाथों से भोजन परोसती थी, क्या उन्हें किसी प्रकार की कमी थी।
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प्रिय पाठक गणों ! जरा विचार की दृष्टि से देखिए कि हम लोगों का जीवन भोजन पर ही निर्भर करता है और सच पूछिए तो भोजन ही हमारे जीवन का आधा सुख है। इस भोजन का भार आचार्यों ने स्त्रियों के ऊपर छोड़ा है। अतएव पुरुषों का जीवन स्त्रियों के हाथों में है, दुख की बात यह है कि फिर भी स्त्रियों के नेत्र नहीं खुलते आजकल के पुरुष जो 100 में 90 दीन-हीन दिखाई दे रहे हैं। इसका कारण क्या है, केवल उपयोगी (पौष्टिकता से भरपूर) आहार ना मिलने के कारण ही आज पुरुष निर्बल, तेज़ हीन, रोग ग्रस्त, एवंँ आलसी दिखाई दे रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है इस पर हम यही कहेंगे कि यह स्त्रियों की मूर्खता और उनके आलस्य का ही परिणाम है।
तो क्या सभी स्त्रियां मूर्ख और आलसी हैं ?
यहां पर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या सभी स्त्रियां मूर्ख और आलसी हैं नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है वैसे तो सभी स्त्रियां रसोई बनाना जानती हैं और बनाती भी हैं, किंतु रसोई का बनाना सामान्य बात नहीं है रसोई बनाने में बड़ी बुद्धिमानी की आवश्यकता होती है। परिवार में प्रत्येक मनुष्य की प्रकृति, समय का ज्ञान, द्रव्यों के गुण-धर्म, प्रवृति आदि बातों का ज्ञान भोजन बनाने वाली स्त्री को होना अत्यंत आवश्यक है।
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इन बातों को जाने बिना जो स्त्री रसोई बनाती है उसके हाथ की रसोई से पेट तो भर जाता है, किंतु वह भोजन रुचिकर अथवा बल कारक नहीं होता। कितनी ही स्त्रियां तो यह भी नहीं जानती कि ‘पाकविद्या’ किस चिड़िया का नाम है और जो जानती भी हैं वह पाक (भोजन बनाने के) कार्य को अति सामान्य काम समझकर घृणा करती हैं तथा अपने हाथ से ना बनाकर रसोइए आदि को रखकर उनके हाथों में खाना बनाने का कार्य सौंप देती है उन स्त्रियों की गिनती ही मुर्ख तथा आलसी स्त्रियों में होती है।
मैं ऐसी सभी महिलाओं से कहना चाहता हूं कि कृपया एक बार विचार तो करें कि जिस भोजन पर आपका और पूरे परिवार का स्वास्थ्य निर्भर करता है, जीवन निर्भर करता है। क्या उसे दूसरों के हाथों में सौंपना अच्छा है अथवा बुरा।
घर में खाना बनाने का ज्यादातर भार माता के ऊपर होता है उसके बाद स्त्री के ऊपर निर्भर करता है कदाचित स्त्री ना हो तो बहन या पुत्री तथा निजी कुटुंबिय स्त्रियों के ऊपर खाना बनाने का भार रहता है। निजी व्यक्तियों के अतिरिक्त यह गुरुतर भार दूसरे के हाथों में सौंपना सर्वथा अनुचित है। क्योंकि दूसरे के हाथों में रसोई रहने से उसमें रसोई की उत्तमताएं और विशेषताएं जो बताई गई है और जो होनी चाहिए वह नहीं रहती। इसी के चलते आपको कभी-कभी इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं या तो आप किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो जाते हैं या कभी-कभी आपको अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है।
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इसीलिए अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य के लिए रसोई बनाने का कार्य अपने ही हाथों में रखें। कदाचित तुम यह कह सकती हो कि यह पाक कार्य करना अत्यंत कठिन है इसे हम पूर्ण रूप से कैसे जान सकते हैं उसके लिए तुम्हें उचित है कि अपने घर की बड़ी बूढ़ी स्त्रियों से सीखना चाहिए। कोई भी कार्य क्यों ना हो करते करते ही उसमें ज्ञान की परिवृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त शिक्षा संबंधी पुस्तकों को पढ़ो और उस ग्रंथ की शिक्षा के अनुसार दो चार बार भोजन बनाने का कार्य करो तुम्हें भोजन बनाने का ज्ञान यथोचित रूप से हो जाएगा। और इसके फिर दो फायदे होंगे एक तो आपके पूरे परिवार का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा दूसरा उत्तम और पौष्टिक सुस्वादु भोजन कराने पर परिवार के सभी जन आप की प्रशंसा भी करेंगे। ऐसा करके आप कहीं ना कहीं आर्थिक रूप से भी सशक्त होने में परिवार की मदद करेंगी, क्योंकि जब शरीर स्वस्थ रहेगा तो बीमारियां नहीं आएंगी और उस पैसे को आप बचा पाएंगे अन्य कामों के लिए अपने भविष्य के लिए।
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खाना बनाने के कुछ नियम
- सबसे पहले खाना बनाने वाली महिलाओं को शांत चित्त रहना चाहिए।
- क्रोध अर्थात गुस्से में कभी भी खाना ना बनाएं।
- खाना बनाने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से साबुन से धो लें तथा सिर को अच्छी तरह से ढक लें।
- अगर कोई चीज नहीं बनानी आ रही तो किसी से पूछने का संकोच कभी ना करें अभिमान या लज्जा ना करें भले ही पूछने पर तुम्हें कोई ताना ही क्यों ना मारे, ताने पर ध्यान ना देकर अपने हित के लिए शिक्षा प्राप्त करें।
- नेगेटिव विचारों से भरकर भी कभी खाना न पकाएं
- किसी के प्रति मन में इर्ष्या या घृणा का भाव रखकर भी खाना नहीं बनाना चाहिए।
यदि तुमने अपने चित्त को शांत और निरभिमान बना लिया तो तुम गुणवती कहलाओगी। नहीं तो वह कहावत हो जाएगी कि- “जो राँध न जाने जी तो क्या करे बेचारा घी।” इसलिए सबसे पहले अपने मन को शिथिल और शांत करके शिक्षा प्राप्त करें उसके बाद रसोई का कार्य करें।
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पाक विद्या में पारंगत होने के बाद ही भोजन बनाने का कार्य है अपने हाथ में लें। कितनी ही वस्तुएं तो ऐसी हैं जो जितनी भी अधिक पकाई जाती है, उतनी ही स्वादिष्ट बनती है और कोई कोई वस्तु ऐसी भी है जो जरा भी कम ज्यादा पकाई जाए तो उसका स्वाद चला जाता है। इसलिए दूसरे से पाक शिक्षा का उपदेश लेकर जब तक अपने हाथ से दो चार बार ना बना लें तब तक यह न समझो कि हमें यह चीज बनानी आ गई, जब कई बार तुम उस पदार्थ को बना लो और वह ठीक से क्रिया पूर्वक बन जाए तब समझो कि अमुक वस्तु बनाना आ गई।
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उम्मीद है आप सभी भोजन के महत्व को समझ गई होंगी और आगे से पाक विद्या में पारंगत होकर इस कार्य को अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य के लिए स्वयं करेंगी।
संदर्भ ग्रंथ- आहार शास्त्र
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