परिचय
यह एक सुप्रसिद्ध धातु है और यह मद्रास, बंगाल, राजपूताना, पंजाब आदि कई स्थानों में खान से निकलता है, इसका रंग सफेद होता है। व्यवहार में इसका उपयोग व्यापारी लोग सुराही, हुक्का, गिलास, कटोरी, थाली आदि बनाने के काम में करते हैं। यह पानी से 8 गुना भारी होता है। प्राचीन रस ग्रंथों में इसे रसक सत्व या खर्पर सत्व नाम से कहा है। यशद नाम से इसका सर्वप्रथम वर्णन भाव प्रकाश और आयुर्वेद प्रकाश में मिलता है। यशद का विशिष्ट गुरुत्व 7 है। 420° शतांश तापमान पर यह पिघलता है, और 907° शतांश तापमान पर पिघलता है। इसकी भस्म 1400 शतांश तापमान पर उड़ने लगती है। खुली हवा में गर्म करने पर यह नीली ज्वालाओं के रूप में जलकर इसकी सफेद भस्म बन जाती है। इसे जस्ते का फूल या मली कहते हैं। इसे राजस्थान और पंजाब में अंजन के प्रयोग में लिया जाता है। जयपुर की मली बहुत प्रसिद्ध है। यह असली पुष्पांजन भी है। इससे उत्तम लाभ होता है।
यशद भस्म पित्त प्रमेह, रसौली, नेत्र रोग, शीत ज्वर,खाँसी, उल्टी, दस्त व यौन रोग, धात, स्वप्नदोष, वीर्यपात की बहुत ही असरकारक आयुर्वेदिक दवा है।
तो आइए जानते हैं, यशद भस्म के फायदे, गुण, उपयोग और सेवन विधि के बारे में।
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शोधन विधि
जो जस्ता भारी, सफेद, चमकदार और दांँतो के समान मोटे रवेवाला हो, वही उत्तम समझा जाता है, और उसी की भस्म अंजन के काम में लेनी चाहिए।
ऐसे उत्तम जस्ते को प्रथम अन्य धातुओं की तरह सात-सात बार तेल, तक्र, गोमूत्र-कांँजी आदि में बुझावें। फिर इसको तेज आंँच पर कड़ाही में रखकर गलाकर पतला करके गो-दुग्ध बुझावें। इस तरह 21 बार गौ दुग्ध में बुझाने से शुद्ध हो जाता है। जस्ते का द्रव (पतला) होते समय उस पर मलाई-सा किट्ट की तरह जमता रहता है। उसको फेंके नहीं, उसे बचे हुए जस्ते के साथ गर्म करके बुझाते रहें।
-सि. यो. संग्रह
नोट
यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी गली (पतली) धातुएं दूध आदि पतले जलीय पदार्थों में डालने से उछलती हैं। अतः जिस बर्तन में बुझाया जाए उस बर्तन के ऊपर चक्की का पाट या कोई ऐसे वजनी पदार्थ का बर्तन रख देना चाहिए, जिसके बीच में छेद हो। उसी छेद की राह से धातु को उसमें को बुझाना चाहिए। (बुझाने के लिए लोहे का इमाम दस्ता लेना ठीक रहता है।) इस प्रक्रिया से जस्ता उछल कर बाहर नहीं आता तथा अच्छी तरह शोधन भी हो जाता है।
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यशद भस्म के फायदे, गुण, उपयोग | yashad bhasma uses in Hindi
यह भस्म कषाय और शीतल गुणयुक्त है। रस वाहिनी और रस पिंड की विकृति में यह बहुत उत्तम औषधि मानी गई है। यह कफ और पित्त शामक, दाह, प्रदर, पित्तज-प्रमेह, खाँसी, अतिसार, संग्रहणी, धातुक्षय, जीर्णज्वर, पांडू, स्वास आदि रोगों में लाभदायक है। कंठमाला, अपची और आभ्यन्तरिक शोथ में भी इस प्रयोग करना लाभदायक है।
1 – यशद भस्म कड़वी, कषैली, शीतल, पित्त नाशक तथा पाण्डु, प्रमेह, श्वास रोग को नष्ट करने वाली तथा आंखों की ज्योति बढ़ाने वाली बहुत ही गुणकारी भस्म है।
2 – आंँख में रोहे आना, आंँख में दर्द होना, आंँखों में बराबर लाली बनी रहना या जल्दी-जल्दी आंखें आ जाना आदि सभी अवस्थाओं में यशद भस्म का उपयोग बहुत ही फायदेमंद है।
3 – आंखों के यह सभी उपद्रव होने पर यशद भस्म का अंजन बनाकर आंखों में लगाएं इसके लिए एक मासा यशद भस्म और गौ घृत 2 तोला, दोनों को बासी पानी से 108 बार कांँसे की थाली में डालकर, हाथ की हथेली से खूब मथ कर प्रति बार पानी निकाल कर धोकर रखें, फिर अंजन बनाकर आंखों में आँजने (आँख में जैसे काजल लगाते हैं) से अच्छा लाभ होता है। यदि बच्चों के लिए बनानी है, तो एक तोला मक्खन और चौथाई रत्ती भीमसेनी कपूर भी डाल दें। यह बच्चों के लिए विशेषकर लाभदायक होगा ग्रीष्म काल में होने वाले बच्चों के फोड़े-फुंसियों में भी लगाने से अच्छा लाभ होता है।
4 – इस अंजन के प्रयोग से पैत्तिक रतौंधी भी दूर हो जाती है। परंतु रतौंधी में इतना और करें कि प्रातःकाल त्रिफला के जल से सिर और आंखों को खूब धोया करें।
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5 – गर्मियों में बरसात के समय में हाथ और पैरों की उंगलियों के बीच जो पानी लग जाने से सफेद पड़ जाती हैं जिसको आम बोलचाल की भाषा में खारवे होना भी कहते हैं, तथा गर्मियों में देखा गया है बच्चों में ज्यादातर फोड़ा फुंसी निकल आते हैं, इन सभी रोगों में यशद भस्म को घी या नारियल के तेल में मिलाकर लेप करने से बहुत जल्दी अच्छी हो जाती हैं।
6 – पीठ, छाती तथा माथे पर कभी-कभी ग्रंथि (गांठ) हो जाती है। यह बच्चे और बड़े दोनों को हो सकती है, जो कि बढ़ती रहती है। साधारण बोलचाल में इसको ‘मांस वृद्धि’ कहते हैं शास्त्रकारों ने इसका नाम अर्बुद (रसौली) रखा है।
रसौली होने पर यशद भस्म को प्रवाल पिष्टी के साथ प्रयोग करने से बहुत अच्छा लाभ होता है। साथ ही इस ग्रंथि या गांठ को फोड़ने के लिए काशीष, सेंधा नमक, चित्रक की जड़, आक, और सेहुँड़ के दूध, दंती की जड़, गुड़ और गौ-दूध इन सब का लेप बनाकर ग्रंथि पर लेप करने से ग्रंथि फूट जाती है और दोबारा नहीं होती।
7 – जिनको भी पित्त बढ़ने के कारण सूजन आ जाती है वह यशद भस्म का प्रयोग सरसों के तेल के साथ मिलाकर करें तो सूजन तुरंत समाप्त हो जाएगी।
8 – पेट में जलन होने पर प्रवाल पिष्टी और आंवले के मुरब्बे के साथ एक रत्ती यशद भस्म, जामुन की गुठली का चूर्ण एक माशे में मिलाकर शहद के साथ देने से विशेष लाभ होता है।
9 – यदि पैत्तिक प्रमेह हो गया हो जिसके कारण पूरे शरीर में दर्द, हाथों पैरों में जलन होना, प्यास अधिक लगना, जीव्हा का सख्त होकर फट जाना, कंठ में अर्थात गले में सूजन हो जाना, मस्तिष्क सुन्न हो जाना, थोड़े परिश्रम से थकावट महसूस होना आदि लक्षण होने पर यशद भस्म एक रत्ती, गिलोय सत्व 4 रत्ती, शिलाजीत एक रत्ती के साथ देने से यह सभी दोष नष्ट होकर रोगी एकदम स्वस्थ हो जाता है।
10 – खांसी होने पर यशद भस्म को सितोपलादि चूर्ण के साथ देने से बहुत जल्दी ठीक हो जाती है।
11 – मंदाग्नि होने पर पंचकोल ( पिंपल, पिपलामूल, चव्य, चित्रक, और सोंठ ) चूर्ण के साथ यशद भस्म एक रत्ती का सेवन करने से अपूर्व लाभ होता है।
12 – दमा और खांसी होने पर एक रत्ती यशद भस्म, 6 माशे अदरक का रस और 6 माशे शहद के साथ सेवन करने से कुछ ही दिनों में यह खांसी और दमे को जड़ से नष्ट करती है।
13 – पित्त ज्वर और खूनी दस्त होने पर छुआरे और चावल के धोवन के साथ यशद भस्म का सेवन करने से बहुत अच्छा लाभ होता है।
14 – शीत ज्वर होने पर लौंग और अजवाइन के साथ यशद भस्म का सेवन करने से बहुत जल्दी ज्वर उतरकर रोगी अच्छा हो जाता है।
15 – उल्टी, बेचैनी तथा जी मिचलाने में मिश्री और जीरे के साथ सेवन करने से बहुत ही अच्छा लाभ होता है।
अतिसार ( दस्त ) और संग्रहणी में
कभी कभी आंतों में सूजन होकर अतिसार हो जाता है। साथ में उल्टी, ज्वर, उदर में दर्द, स्वरभंग आदि उपद्रव उत्पन्न हो जाते हैं और रोगी की शक्ति क्षीण होकर ऐसी दशा हो जाती है कि उससे उठा बैठा भी नहीं जाता, यहां तक कि हाथ पैर का संचालन भी अच्छी तरह नहीं हो पाता, अर्थात बहुत भयंकर परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति भीषण परिस्थिति में यशद भस्म बहुत अच्छा काम करती है। यशद भस्म एक रत्ती, मिश्री 4 रत्ती दोनों एक साथ मिलाकर तीन पुड़िया बना प्रातः-सांय तथा दोपहर में शहद या मट्ठा (छाछ) के साथ दें।
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राजयक्ष्मा अर्थात टीबी होने पर
जब इस रोग का असर संपूर्ण शरीर में अच्छी तरह व्याप्त हो गया हो, खांसी के मारे छाती और कलेजा तथा पेट में दर्द होता हो, फुफ्फुस अर्थात फेफड़ों के कुछ भागों में इसका असर पड़कर वह भाग नष्ट हो गया हो, बुखार हर समय बना रहता हो, प्रातः काल पसीना जोरों से आता हो, बल तथा मांस क्षीण हो गया हो ऐसी दशा में यशद भस्म एक रत्ती, मोती पिष्टी आधी रत्ती, सितोपलादि चूर्ण दो माशा और च्यवनप्राशावलेह अथवा वासावलेह 2 तोला में मिलाकर सेवन कराएं। ऊपर से बकरी का दूध पिला दें। इससे ऊपर बताए सभी उपद्रव शांत होकर रोग-शमन (नष्ट) होने लगता है।
पाण्डु (पिलिया) रोग में
पीलिया होने पर यशद भस्म को मंडूर भस्म के साथ देने से बहुत अच्छा लाभ होता है तथा इससे होने वाले उपद्रवों में पान के रस और मधु के साथ देने से बहुत अच्छा लाभ करती है।
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पैत्तिक प्रमेह में
जिस प्रमेह में रोगी को पित्त की अधिकता होने के कारण हाथ-पाँव तथा संपूर्ण शरीर में दाह (जलन) मालूम हो, प्यास लगने पर थोड़े पानी से शांति मिल जाए, मन में बेचैनी के कारण विचार शक्ति का ह्रास हो गया हो, मस्तिक सून्य हो गया हो, ऐसी दशा में यशद भस्म प्रवाल चन्द्रपुटी या गुडूची के साथ देने से बहुत अच्छा लाभ होता है।
यौन रोगों में यशद भस्म का उपयोग
यौन रोगों में यशद भस्म के फायदे और सेवन विधि
धातु अर्थात वीर्य इतना पतला हो गया हो कि पेशाब के साथ पानी की तरह बह कर निकल जाता हो, स्त्री के बारे में सोचने मात्र से ही धातु-स्राव शुरू हो जाता हो या थोड़ी भी खट्टी मीठी चीजें खाने से रात में स्वप्नदोष हो जाता हो अथवा मैथुन इच्छा अर्थात संभोग की इच्छा मात्र से ही शुक्रस्राव शुरू हो जाता हो, ऐसी स्थिति में रोगी बहुत परेशान हो जाता है। इन सभी दोषों में भी यशद भस्म अत्यंत गुणकारी है। यह सभी दोष होने पर यशद भस्म एक रत्ती और शिलाजीत एक रत्ती दोनों को एक साथ लेकर मलाई के साथ सेवन करने से बहुत अधिक लाभ होता है।
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सूजाक रोग में
सूजाक रोग होने पर रोगी को कभी भी चैन नहीं पड़ता, मारे दर्द के परेशान रहता है, इंद्री में जलन, पेशाब में भी जलन तथा बहुत कष्ट से पेशाब आता है। मवाद का रंग पीला सा तथा उसमें से बहुत बुरी बदबू आती है। ऐसी दशा में 3 माशे सन्दल तेल (चंदन तेल) आधी रत्ती यशद भस्म मिलाकर सेवन करें। और ऊपर से दही की लस्सी पिएं। तथा प्रातः-सांय त्रिफला को दही के पानी में भिगोकर उस पानी को छानकर रख लें। इस छने हुए पानी से पिचकारी लेकर इंद्री को धो लें। इससे मूत्र नली साफ हो जाती है, तथा धीरे-धीरे सुजाक रोग भी मिट जाता है।
गोखरू क्वाथ के साथ यशद भस्म का सेवन करने से भी पेशाब साफ आता है और कौंच के बीज के चूर्ण तथा मिश्री के साथ यशद भस्म का सेवन करने से नपुंसकता रोग पूरी मिट जाता है।
– औ. गु. ध. शा.
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यशद भस्म की मात्रा, अनुपान और सेवन विधि
आधी रत्ती से एक रत्ती यशद भस्म शहद, मक्खन, मलाई, मिश्री या रोगानुसार अनुपान के साथ दें।
वक्तव्य
आधुनिक वैज्ञानिक विधि से बनी यशद भस्म (जिंक ऑक्साइड) का भी नेत्र अंजनों (सुरमा, काजल) में तथा वर्णों पर लगाने के मलहमों में प्रचुर प्रयोग हो रहा है। यह भी एक प्रकार का जस्ते का फूल ही है इसे खाने के काम में ना लें।
आपने यशद भस्म के फायदे, गुण, उपयोग और सेवन विधि के बारे मे तो जान लिया। आइये अब इस भस्म को बनाने की विधि, यशद भस्म की कीमत और यशद भस्म के नुकसान के बारे मे जानते हैं।
भस्म बनाने की विधि
शुद्ध यशद को कड़ाही में आग पर पिघला कर नीम के गिले पत्तों का रस या चूर्ण का थोड़ा-थोड़ा प्रक्षेप देकर नीम के डंडे से चलाते रहें। चूर्ण होने पर ढककर चार-पांच घंटे तक तीव्र आँच लगाएं। स्वांग शीतल होने पर पीसकर, एक बर्तन पर कपड़ा बांधकर, कपड़े पर थोड़ी-थोड़ी भस्म और पानी डालकर हाथ से चलाते जाएं, इस प्रकार सारी भस्म छान लें और 3-4 घंटे तक पड़ा रहने दें। बाद में पानी को नितार कर अलग कर दें तथा भस्म को सुखाकर ग्वारपाठा स्वरस की भावना देकर टिकिया बनाकर सुखाकर, सराबों में रख कपड़मिट्टी से संधि बंद कर प्रथम पुट में तेज आँच दें। बाद में इसी प्रकार उत्तरोत्तर कुछ हल्की आंच में पुट दें। 10 – 11 पुट में कुछ ललाई लिए हुए पीले रंग की भस्म बनेगी इसकी बारीक घुटाई करके महीन कपड़े से छानकर कांच या चीनी मिट्टी के पात्र में रख लें ।
-रसायन शहर के आधार पर स्वानुभूत विधि
यशद भस्म के नुकसान
यह पूर्णतया आयुर्वेदिक औषधि है। आयुर्वेद सार संग्रह में भी इससे होने वाले किसी भी प्रकार के नुकसान का वर्णन नहीं किया गया है, अतः हम कह सकते हैं कि यह पूर्णतया सुरक्षित और गुणकारी औषधि है।। लेकिन फिर भी इस्तेमाल करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य कर लें।
यशद भस्म की कीमत
यशद पर भस्म को आप आसानी से बाजार से खरीद सकते हैं। बहुत सी आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनियां इसका निर्माण करती हैं। आप इसे अमेजॉन से भी ऑनलाइन खरीद सकते हैं। अमेजॉन पर इसकी 10 ग्राम, 2 पैक की कीमत ₹206 के आसपास है। कीमतों में अंतर जगह, स्थान और मार्केट के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है।
संदर्भ:- आयुर्वेद-सारसंग्रह. श्री बैद्यनाथ भवन लि. पृ. सं. 121
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