महाज्वरांकुश रस इंफ्लुएंजा, विषम ज्वर, मलेरिया, मियादी बुखार आदि सभी तरह के ज्वर की ऐसी चमत्कारिक आयुर्वेदिक औषधि है। जिसके प्रयोग मात्र से ज्वर व उससे होने वाले लक्षण दोनों नष्ट होकर रोगी उत्तम स्वास्थ्य को प्राप्त करता है।
तो आईये जानते हैं, महाज्वरांकुश रस के फायदे, गुण, उपयोग और सेवन विधि | महाज्वरांकुश रस के फायदे और नुकसान | mahajwarankush ras uses in Hindi
महाज्वरांकुश रस के मुख्य घटक
शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, शुद्ध विष – ये प्रत्येक द्रव्य 1-1 भाग, शुद्ध धतूरा बीज 3 भाग, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल- ये प्रत्येक द्रव्य 4-4 भाग लेकर प्रथम पारा – गन्धक की कज्जली बनावें, पश्चात अन्य द्रव्यों का सूक्ष्म कपड़छन चूर्ण मिलाकर, जम्बीरी नींबू का रस और अदरक के रस की एक-एक भावना देकर दृढ़ मर्दन करें। गोली बनाने योग्य होने पर एक एक रत्ती की गोलियां बनाकर सुखा कर रखें लें।
-र. सा. सं.
महाज्वरांकुश रस के फायदे, गुण, उपयोग और सेवन विधि | महाज्वरांकुश रस के फायदे और नुकसान | mahajwarankush ras uses in Hindi
1 – यह रसायन वेदना शामक, ज्वरघ्न और पाचन है। वात ज्वर, कफ ज्वर, द्वन्द्वज्वर, त्रिदोषज्वर और समस्त प्रकार के विषम ज्वर, एकाहिक, द्विमासिक, तृतीया, चातुर्थिक आदि जवरों को नष्ट करता है।
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2 – इस रस का प्रयोग ठंड लगकर आने वाले और बिना ठंड लगकर आने वाले ज्वर तथा निरंतर रहने वाले ज्वर और घटने बढ़ने वाले ज्वरों में अत्यंत उपयोगी है।
3 – लगभग सभी प्रकार के ज्वर तथा उससे उत्पन्न होने वाले विकार बदहजमी, पतले दस्त होना, पेट दर्द होना, पेट में अफारा आना आदि विकारों को नष्ट करता है। जीर्ण संधिवात (आमवात) में भी महाज्वरांकुश रस का सेवन करने से बहुत अधिक लाभ होता है।
4 – महाज्वरांकुश रस के प्रयोग से पसीना आता है और वेदना कम होती है तथा आम का पाचन होकर ज्वर नष्ट हो जाता है। बदहजमी या असात्म्य भोजन से पचनेन्द्रिय संस्थान के कार्य की विकृति होकर उत्पन्न ज्वर पर इस रस का उत्तम प्रभाव होता है। विशेषतः वेदना सहन न करने वाले अधीर और चंचल रोगी के लिए इसका प्रयोग बहुत ही लाभदायक है।
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5 – वात प्रधान ज्वर होने पर जिसमें पूरे शरीर में कंपन होना, ज्वर का अनियमित वेग, नींद ना आना, बार बार छींक आना, शरीर जकड़ जाना, हाथ पैर टूटना, प्रत्येक जोड़ में दर्द होना, मस्तिष्क और सिर में दर्द होना, मुख में फीका पन होना, मलावरोध होना, सारे शरीर में भारीपन, हाथ पैरों का सुन्न हो जाना, कानों में सांय-सांय होना, दांत भींचना, बेचैनी रहना, सूखी खांसी, उबकाई, थोड़ी थोड़ी उल्टी होना, प्यास लगना, चक्कर आना, खाट में पड़े पड़े चिल्लाते रहना (प्रलाप करना) पेशाब का रंग पीला, लाल या काला सा होना, पेट में दर्द व अफारा होना, बार बार उबासी आना तथा लक्षण वृद्धि होने पर असहनशीलता होना, रोगी का बड़-बड़ करते रहना, ( पूछने पर रोगी कहता है कि प्रलाप करने पर अच्छा लगता है ) इत्यादि वात पधान लक्षण होने पर महाज्वरांकुश रस अत्यंत गुणकारी है। इसके प्रयोग से यह सभी लक्षण नष्ट होकर ज्वर उतर जाता है।
6 – कफ प्रधान ज्वर होने पर जिसमें ज्वर का वेग मंद रहना, अंगों में जड़ता, आलस्य, निंद्रा वृद्धि (अधिक नींद आना), अंगों का जकड़ा हुआ सा लगना, कपड़ा उतारने पर ठंड लगना, मुंह में बार बार पानी आना, उल्टी आना, उबकाई आना, पेट में भारीपन, आंखों के आगे अंधकार छाना, सूर्य की धूप में बैठने या अग्नि तापने की इच्छा होना एवं धूप में बैठने से अच्छा लगना, खांसी, अरुचि, बेचैनी आदि कफ प्रधान ज्वर के लक्षण होने पर भी इस रस का उपयोग अत्यंत गुणकारी है। क्योंकि यह वात और कफ दोनों तरह के ज्वर और उनसे होने वाले लक्षणों को नष्ट करता है।
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7 – कफ वात ज्वर होने पर, जिसमें अंग में जड़ता, अति गीलापन, मस्तिष्क जकड़ हुआ सा लगना, प्रत्येक मांसपेशी और पूरे शरीर में दर्द होना, तंद्रा, जुकाम सदृश नाक से श्लेष्मस्राव होना, प्रस्वेद आना, हाथ-पैर और आंखों में जलन होना, डर लगना, क्रोध उत्पन्न होना, पूरे शरीर में थकावट महसूस होना, आदि लक्षणों में ज्वर विशेषतः मर्यादित होता है। ऐसी दशा में भी महाज्वरांकुश रस का प्रयोग करने से बहुत अच्छा लाभ होता है।
8 – संतत् विषम ज्वर अर्थात 7 या 10 दिन तक रहने वाले मियादी बुखार में अति जड़ता, हाथ-पैर टूटना, अति प्यास (यह प्यास उष्ण जल या सोंठ, लौंग आदि पदार्थों के सेवन से कम होती है), इस ज्वर में तथा 1 दिन छोड़कर आने वाले ऐकाहिक ज्वर में ( पारी से आने वाला ज्वर ) इस रस का सेवन अत्यंत लाभकारी है। ज्वर का वेग आने के 6 घंटा पहले से एक एक गोली दो 2-2 घंटे के अंतर से बताशे में रखकर सेवन करने से अच्छा लाभ होता है।
9 – अजीर्ण (बदहजमी) या अपथ्य सेवन से ज्वर आने पर कोष्ठस्थ विकृति होती है, फिर उबकाई, लालस्राव, पेट में वायु भरना (अफारा आना), अरुचि, पेट में मीठा मीठा दर्द होना, थोड़ा-थोड़ा दस्त लगते रहना, अग्निमांद्य किसी भी प्रकार के भोजन की इच्छा ना होना, शारीरिक उत्ताप मर्यादित होना, प्रत्येक संधि में दर्द आदि लक्षण प्रतीत होते हैं तो इस प्रकार के ज्वर पर महाज्वरांकुश रस एक रामबाण औषधि का काम करता है।
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महाज्वरांकुश रस की मात्रा अनुपान और सेवन विधि
एक एक गोली सुबह शाम या आवश्यकतानुसार दिन में तीन चार बार 4-4 घंटे के अंतर से ज्वर चढ़ने से पूर्व अदरक रस और मधु के साथ या दोषा अनुसार अनुपान के साथ देने से बहुत अच्छा लाभ होता है।
विशेष नोट
महाज्वरांकुश रस एक पूर्णता आयुर्वेदिक और सुरक्षित औषधि है फिर भी इसका प्रयोग करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य कर लें।
महाज्वरांकुश रस को आप आसानी से मार्केट से खरीद सकते हैं। आप इसे ऑनलाइन वैद्यनाथ की ऑफिशियल वेबसाइट से भी खरीद सकते हैं जिस पर इसकी कीमत 80 टेबलेट की पैकिंग की डब्बी मात्र ₹92 में मिल रही है।
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संदर्भ:- आयुर्वेद-सारसंग्रह. श्री बैद्यनाथ भवन लि. पृ. सं. 422
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