सितोपलादि चूर्ण पूर्णत: आयुर्वेदिक औषधि है। इसके सेवन से वायरल बुखार, सर्दी, खांसी, जुकाम , या सांस की कोई भी तकलीफ जैसे सांस की एलर्जी, अस्थमा, साइनस आदि दोष अति शीघ्र दूर हो जाते हैं। आज हम जानेंगे सितोपलादि चूर्ण के फायदे, नुकसान और सेवन विधि (Benefits of Sitopaladi Churna in Hindi) के बारे में।
सितोपलादि चूर्ण के मुख्य घटक
1 – मिश्री 17 तोला।
2 – बंशलोचन 8 तोला।
3 – पीपली 4 तोला।
4 – छोटी इलायची के बीज 2 तोला।
5 – दालचीनी एक तोला।
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सितोपलादि चूर्ण बनाने की विधि
ऊपर बताए गई सभी चीजों को लेकर, सुखा कर, मोम दस्ते में कूट कर, कपड़-छान कर लें और एयरटाइट कंटेनर में बंद करके रख लें आप का चूर्ण तैयार है।
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सितोपलादि चूर्ण के फायदे|Benefits of Sitopaladi Churna in Hindi
1 – इस चूर्ण के उपयोग से पुरानी से पुरानी खांसी भी ठीक हो जाती है अतः जो व्यक्ति खांसी से परेशान है वह इसका सेवन अवश्य करें।
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2 – जिन व्यक्तियों का खांस – खांस कर बुरा हाल हो गया है और खांसी की वजह से पसलियों में दर्द रहना शुरू हो गया है यह चूर्ण उसमें भी शीघ्रता से फायदा पहुंचाता है।
3 – सितोपलादि चूर्ण रक्त-पित्त को शांत करता है, इसलिए जिन्हें भी पित्त बढ़ने के कारण हाथों पैरों में जलन रहती है वह भी इसके सेवन से लाभ उठा सकते हैं।
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4 – जिन व्यक्तियों को खाने में रुचि नहीं है वह इस चूर्ण का प्रयोग अवश्य करें क्योंकि यह खाने में रुचि पैदा करता है। साथ ही इसके प्रयोग से पाचक रस आसानी से बनने लगता है क्योंकि यह जठराग्नि को तेज करता है। जिससे भूख खुलकर लगने लगती है।
5 – जिनको भी पित्त वृद्धि के कारण कफ सूखकर छाती में बैठ जाता है, गला सूखने के कारण प्यास ज्यादा लगती है, हाथ- पांव और शरीर में जलन रहने लगती है इन सब लक्षणों में भी सितोपलादि चूर्ण बहुत ही गुणकारी है।
6 – खाने की इच्छा ना होना, मुंह से खून गिरना, साथ ही थोड़ा-थोड़ा ज्वर बने रहना ( यह ज्वर विशेषकर रात में बढ़ता है ), ज्वर रहने के कारण शरीर में कमजोरी और दुर्बलता महसूस करना आदि उपद्रव में भी इस चूर्ण का उपयोग किया जाता है, और इससे काफी लाभ मिलता है।
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7 – बच्चों के सूखा रोग में जब बच्चा कमजोर और निर्बल हो जाए, साथ ही थोड़ा ज्वर भी बना रहे, श्वास या खांसी भी हो तो इस चूर्ण के साथ प्रवाल भस्म और स्वर्ण बसंत मालती रस की थोड़ी मात्रा मिलाकर सुबह – शाम सेवन करने से अपूर्व लाभ होता है।
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8 – बिगड़े हुए जुकाम में भी तो सितोपलादि चूर्ण का उपयोग किया जाता है।अधिक सर्दी लगने, शीतल जल अथवा असमय में जल पीने से जुकाम हो गया हो, कभी-कभी यह जुखाम रुक भी जाता है। इसका कारण यह है कि जुकाम होते ही यदि सर्दी रोकने के लिए शीघ्र ही उपाय किया जाए, तो कफ सूख जाता है, परिणाम यह होता है कि सिर में दर्द, सूखी खांसी, थकावट, आलस्य, सिर में भारीपन, भूख होते हुए भी खाने की इच्छा ना होना आदि उपद्रव उत्पन्न हो जाते हैं ऐसी स्थिति में इस चूर्ण को शरबत बनफ्सा के साथ देने से बहुत लाभ होता है, क्योंकि यह रुके हुए दूषित कफ को पिघला कर बाहर निकाल देता है।
9 – साइनस की समस्या होने पर जिनको डॉक्टर ने सर्जरी के लिए बोल दिया हो उस अवस्था में भी सितोपलादि चूर्ण लंबे समय तक प्रयोग करने पर अवश्य लाभ होता है और सर्जरी से भी बचा जा सकता है।
सितोपलादि चूर्ण की सेवन विधि
1 – बड़ों को 5 ग्राम सुबह शाम शहद अथवा घी के साथ इसका सेवन करना चाहिए।
2 – बच्चों को 2 ग्राम सुबह-शाम शहद अथवा घी के साथ इसका सेवन करवाना चाहिए।
3 – पित्त प्रकृति वाले इसका सेवन घी के साथ करें और कफ प्रकृति वाले सितोपलादि चूर्ण का सेवन शहद के साथ करें।
सितोपलादि चूर्ण के नुकसान
सितोपलादि चूर्ण वैसे तो एक पूर्णतया आयुर्वेदिक सुरक्षित और सेफ दवा है, फिर भी इसके प्रयोग से पहले कृपया अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य कर लें।
संदर्भ:- आयुर्वेद-सारसंग्रह. श्री बैद्यनाथ भवन लि. पृ. सं. 693
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