परिचय
अशोकारिष्ट एक आयुर्वेदिक औषधि है। यह पूर्णतया सुरक्षित दवा है। यह महिलाओं के पीरियड से संबंधित सभी समस्याओं में एक रामबाण औषधि का काम करती है, फिर चाहे वह ओवर ब्लीडिंग हो, खून की कमी हो, पीरियड का कम ज्यादा आना हो, पेशाब में जलन या चेहरे की काली झाइयां तो देखा आपने अशोकारिष्ट के कितने फायदे हैं। आज हम अशोकारिष्ट के फायदे, नुकसान, गुण, उपयोग और सेवन विधि के बारे में ही बात करने वाले हैं। जिनके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है, अतः आप इस ब्लॉग को पूरा पढ़ें।
इसके साथ साथ बहुत कम लोग जानते हैं कि यह पुरुषों के योन रोग जैसे
स्वपनदोष में भी बहुत उपयोगी है।
तो आइए जानते हैं अशोकारिष्ट के फायदे नुकसान, गुण उपयोग, मुख्य घटक, और इसके अलग-अलग बीमारियों में इसके सेवन विधि के बारे में।
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अशोकारिष्ट के फायदे और सेवन विधि |
अशोकारिष्ट के मुख्य घटक
अशोक की छाल 5 सेर को जौकुट कर अच्छे तांबे या पीतल के कलईदार बर्तन में 1 मन 11 सेर 16 तोला जल में डालकर मंदाग्नि से क्वाथ बनाएं। जब चतुर्थांश जल 12 सेर 4 तोला बाकी रहे, तब उतारकर कपड़े से छान लें। ठंडा हो जाने पर उसमें 10 सेर गुड मिलावें पश्चात भांड या उत्तम काठ की टंकी में डालकर उसमें धाय के फूल 64 तोला, स्याह जीरा, नागरमोथा, सोंठ,
दारूहल्दी, नीलोफर, हरड़, बहेड़ा,
आमला, आम की मिंगी, सफेद जीरा, वासक मूल और सफेद चंदन प्रत्येक का चूर्ण 4 – 4 तोला मिलाकर, यथा विधि संधान करके 1 माह के बाद तैयार होने पर छानकर रख लें। — भै. र.
मात्रा और अनुपान – 1 तोला से 2 तोला संभाग जल मिलाकर भोजन के बाद लें।
Ashokarishta Benefit in Hindi | अशोकारिष्ट के फायदे नुकसान, गुण उपयोग और सेवन विधि
स्त्रियों को होने वाले प्रमुख रोग यथा – रक्त –
श्वेत प्रदर, पीड़ितार्तव, पांडू, गर्भाशय व योनि भ्रंश, डिम्बकोष प्रदाह, हिस्टीरिया, वन्ध्यापन तथा ज्वर, रक्तपित्त, अर्श, मंदाग्नि, सूजन, अरुचि इत्यादि रोगों को नष्ट करता है।
अशोकारिष्ट में अशोक की छाल की प्रधानता है। अशोक की कई जातियां होती हैं। इनमें एक जाति के पत्ते रामफल के समान, फूल नारंगी रंग के होते हैं, जो बसंत ऋतु में खिलते हैं, इसको लैटिन में ” जौनेसिया अशोक ” कहते हैं, और यही असली अशोक है। अशोकारिष्ट के लिए इसी अशोक की छाल लेनी चाहिए यद्यपि शास्त्र में ” अशोकस्य तुलामेकां चदुर्द्रणे जले पचतॆ् ” इतना ही लिखा है, वहां स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि किस जाति के अशोक की छाल लें। परंतु अनुभव से ज्ञात हुआ है कि उपरोक्त अशोक – छाल द्वारा निर्मित अशोकारिष्ट जितना गुण कारक होता है, उतना अन्य जाति के अशोक की छाल द्वारा निर्मित अशोकारिष्ट गुणकारी नहीं होता है। उपरोक्त अशोक बंगाल में बहुत मिलता है। अस्तु। अशोक मधुर, शीतल, अस्थि को जोड़ने वाला, सुगंधित, कृमि नाशक, कसैला, त्वचा की कांति बढ़ाने वाला, स्त्रियों के रोग दूर करने वाला, मल शोधक, पित्त, दाह, श्रम, उदररोग, शूल, विष,
बवासीर, अपच और रक्त रोग नाशक है।
डॉक्टरों ने भी अशोक का रासायनिक विश्लेषण करके देखा है। इसके अंदर का अल्कोहोलिक एक्सट्रैक गरम पानी के अंदर घुलने वाला है। इसमें टैनिन की मात्रा काफी पाई गई है, और एक इस प्रकार का प्राणिवर्ग से संबंध रखने वाला पदार्थ पाया गया, जिस में लोहे की मात्रा काफी थी। इसमें अलकेलाइड और एसेंशियल आयल की मात्रा बिल्कुल नहीं पाई गई। अशोक के विषय में प्राय: प्रसिद्ध डॉक्टरों का मत है कि अशोक की छाल बहुत सख्त ग्राही है, क्योंकि उसमें टैनिन एसिड रहता है।
वास्तव में अशोकारिष्ट स्त्रियों का परम मित्र है, इसका कार्य गर्भाशय को बलवान बनाना होता है। गर्भाशय की शिथिलता से उत्पन्न होने वाले अत्यार्तव – विकार में इसका उत्तम उपयोग होता है, गर्भाशय के भीतर के आवरण में विकृति, बीज वाहिनिओं की विकृति, गर्भाशय के मुख पर योनि-मार्ग में या गर्भाशय के भीतर या बाहर व्रण हो जाना आदि कारणों से अत्यार्तव रोग उत्पन्न होता है। इसमें अशोकारिष्ट के उपयोग से अच्छा लाभ होता है।
कितनी ही स्त्रियों को मासिक धर्म आने पर उदर पीड़ा की आदत पड़ जाती है, जिसे पीड़ितार्तव का कष्टार्तव कहते हैं – इस रोग में मुख्यत: बीज वाहिनी और बीजाशय की विकृति कारण होती है। कितनी ही रुग्णाओं को तीव्र पीड़ा होती है, कमर में भयंकर दर्द, सिर दर्द, वमन आदि लक्षण होते हैं। इस विकार में अशोकारिष्ट एक रामबाण औषधि का काम करता है।
प्रदर रोग –
मद्यपान, अजीर्ण, गर्भस्राव, गर्भपात, अति मैथुन, कमजोरी में परिश्रम, चिंता, अधिक उपवास, गुप्तांगों का आघात, दिवाशयन आदि से स्त्रियों का पित्त दूषित होकर पतला और अमल रस प्रधान हो जाता है, वह खून को भी वैसा बना डालता है। फलत: शरीर में दर्द, कटीशूल, सिर दर्द, कब्ज तथा बेचैनी आरंभ हो जाती है। साथ ही योनिद्वार से चिकना, लस्सेदार, सफेदी लिए चावल के धोवन के समान, पीला-नीला-काला, रूक्ष, लाल, झागदार मास के धोवन के समान रक्त गिरने लगता है। रोग पुराना हो जाने पर उसमें दुर्गंध निकलने लगती है, और रक्तस्राव मज्जा मिश्रित भी हो जाता है। ऐसा हो जाता है कि चलते – फिरते उठते – बैठते हरदम खून जारी रहता है, कोई अच्छा कपड़ा पहनना कठिन हो जाता है। कभी-कभी खून के बड़े-बड़े जमे हुए, कलेजे के समान टुकड़े गिरने लगते हैं। इस अवस्था में खाना-पीना, उठना बैठना, सोना सब मुश्किल हो जाता है। यह हालत लगातार महीनों तक चलती है। कभी-कभी किसी उपचार या अधिक रक्तभाव से कुछ दिन के लिए खून का वेग बंद भी हो जाता है। परंतु फिर वही हालत हो जाती है। इस प्रकार तमाम शरीर का रक्त गिर जाता है, और शरीर बिल्कुल रक्त हीन हो जाता है। पाचन शक्ति बिल्कुल खराब हो जाती है, अतः नया रक्त भी नहीं बन पाता। अशोकारिष्ट उपरोक्त बीमारियों को दूर कर शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए अपूर्व गुणकारी है।
श्वेत प्रदर –
इसी तरह श्वेत प्रदर में रक्त की जगह सफेद गाढ़ा और लस्सेदार पानी गिरता है। इसकी उत्पत्ति के दो स्थान हैं – योनि की श्लैष्मिक कला तथा गर्भाशय की भीतरी दीवार, यह रस इसी कला या त्वचा में बनता और निकलता रहता है। थोड़ा बहुत तो यह त्वचा बनाती ही रहती है, जो योनि को तर रखने के लिए आवश्यक भी है। किंतु अधिक सहवास के कारण इस स्थान में विकृति पैदा हो जाने से यह रस अधिकता से बनने लगता है, और फिर योनि मार्ग से सदा सफेद, लस्सेदार पदार्थ गिरता रहता है। पहले तो गंध रहित, फिर दुर्गंध युक्त स्राव होने लगता है, और पीड़ा भी धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। इस रोग में भी वे सभी उपद्रव होते हैं जो रक्त प्रदर में होते हैं। अशोकारिष्ट का सेवन इन सभी बीमारियों को दूर करने के लिए भी एक रामबाण औषधि का काम करता है।
पीड़ितार्तव मे मन्द ज्वर होता है। मासिक धर्म बड़े कष्ट से और कम आता है, कमर, पीठ, पार्श्व आदि सभी अंगों में बहुत दर्द होता है। पेशाब भी बड़े कष्ट से उतरता है। इस रोग में सबसे अधिक पीड़ा बस्ति स्थान (पेडू ) में होती है, इससे मुक्त होने के लिए अशोकारिष्ट का सेवन अवश्य करना चाहिए।
गर्भाशय भ्रंश या योनि भ्रंश में –
मैथुन क्रिया का ज्ञान नहीं रहने के कारण या मूर्खतापूर्ण ढंग से
मैथुन करने पर गर्भाशय तथा योनि दोनों अपने स्थान से हट जाते हैं। गर्भाशय तो भीतर ही टेढ़ा होकर नाना प्रकार की पीड़ा का कारण बनता है, और योनि बाहर निकल आती है। या बार-बार बाहर-भीतर आती-जाती रहती है। इसके साथ पेडू और कमर में दर्द होना, पेशाब करने में दर्द होना, श्वेत प्रदर का जोर होना, तथा मासिक धर्म कम होना या बिल्कुल बंद हो जाना आदि लक्षण होते हैं। ऐसी स्थिति में अशोकारिष्ट का सेवन करावे साथ ही में चंदनादि चूर्ण में त्रिवंग भस्म मिलाकर सुबह-शाम दूध के साथ देने से शीघ्र लाभ होता है।
डिम्बकोष प्रदाह –
यह रोग ऋतुकाल में पुरुष के साथ संगम करने से होता है, व्यभिचारिणी और वेश्याओं को यह रोग अधिक होता है। इसमें पीठ और पेट में दर्द होना, वमन होना, रोग पुराना हो जाने पर योनि से पीप निकलना आदि लक्षण होते हैं। स्त्रियों के लिए यह रोग बहुत त्रासदायक है। इसमें प्रातः सायं
चंद्रप्रभा वटी एक-एक गोली तथा भोजनोत्तर अशोकारिष्ट बराबर जल मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
हिस्टीरिया में –
स्नायु समूह की उग्रता से यह रोग पैदा होता है, रोग पैदा होने के पहले छाती में दर्द तथा शरीर और मन में ग्लानि उत्पन्न होती है, ऐसे देखने में तो यह रोग मिर्गी जैसा ही प्रतीत होता है, परंतु इसमें रोगिणी के मुंह से झाग नहीं आते, कभी-कभी इस रोग में पेट के नीचे एक गोला से उठकर ऊपर की ओर जाता है। गर्भाशय संबंधी किसी भी रोग से यह रोग उत्पन्न हो सकता है। यह रोग बड़ा दुष्ट और नव युवतियों को तंग करने वाला है अशोकारिष्ट के सेवन से इस रोग को भी दूर किया जा सकता है।
पाण्डु रोग –
स्त्रियों के रक्त प्रदर आदि कारणों से रक्त का क्षय होकर उनका शरीर पिताभ रंग का हो जाता है। इसमें शारीरिक शक्ति का क्रमशः ह्रास होने लगता है। आलस्य और निद्रा हरदम घेरे रहती है, थोड़ा भी परिश्रम करने से भ्रम (चक्कर) आने लगता है। भूख नहीं लगती। यदि कुछ भी खा लें, तो मंदाग्नि के कारण हजम नहीं हो पाता, जिससे पेट भारी बना रहता है। कदाचित तरुणावस्था में यह रोग हुआ, तो यौवन का विकास ही रुक जाता है, और स्त्री अपनी जिंदगी से निराश रहने लग जाती है। इस दुष्ट रोग का कारण बहुत मैथुन या बाल विवाह है। इस रोग में प्रातः सायं नवायस लोह और भोजन उपरांत अशोकारिष्ट में संभाग लोहासव तथा बराबर जल मिलाकर देने से आशातीत लाभ होता है।
ऊर्ध्वगत रक्तपित्त के लिए अशोकारिष्ट अत्यंत उत्तम औषधि है। रक्तार्श (खूनी बवासीर ) में भी विशेषतः वेदना या जलन होने पर अशोकारिष्ट के सेवन से लाभ होता है।
नीचे हमने इसका सरल विश्लेषण किया है अपने अनुभव के आधार पर कि आप किन किन बीमारियों में कैसे-कैसे इसका प्रयोग कर सकते हैं।
अलग-अलग बीमारियों में अशोकारिष्ट के फायदे, मात्रा अनुपान और सेवन विधि
1 – अशोकारिष्ट में अशोक की छाल प्रधान होती है यह आयरन से भरपूर होता है, और स्वभाव में ठंडा होता है तो हम यह कह सकते हैं कि यह खून की कमी और पेट के रोगों में बहुत उपयोगी है।2 – जिन महिलाओं को ज्यादा पीरियड आते हैं महीने में दो बार, हर 15 दिन में आ जाते हैं या ओवर ब्लीडिंग होती है, ऐसी सभी महिलाओं को अशोकारिष्ट का सेवन जरूर करना चाहिए।
3 – वे सभी महिलाएं जिनको ओवर बिल्डिंग के कारण हाथ पैर ठंडे पड़ जाते हैं, और आयरन की कमी के कारण हाथों पैरों में क्रेम्प पड़ जाते हैं। उन सभी महिलाओं को भी अशोकारिष्ट का सेवन जरूर करना चाहिए।
4 – वे सभी महिलाएं जिनको पेशाब में जलन या खून आता है, या इंटरनल (अंदरूनी) जख्म हो गए हैं। तो उन सभी महिलाओं के लिए भी अशोकारिष्ट एक उत्तम औषधि है अतः वे सभी महिलाएं भी इसका सेवन जरूर करें।5 – सफेद पानी और लिकोरिया की तो यह रामबाण औषधि है। सभी महिलाओं को जो इन समस्याओं से पीड़ित हैं। उनको इसका सेवन जरूर करना चाहिए।
6 – जिन महिलाओं को चेहरे पर काले काले झाइयां हो गई हैं उन सभी महिलाओं को भोजन के उपरांत चार-चार चम्मच समान मात्रा में जल के साथ इसका सेवन करना चाहिए।
7 – जिन महिलाओं को गर्भाशय से संबंधित कोई भी समस्या है उन सभी महिलाओं को चंद्रप्रभा वटी के साथ अशोकारिष्ट का सेवन करना चाहिए यह गर्भाशय को मजबूती प्रदान कर गर्भाशय से जुड़ी सभी समस्याओं का निवारण करता है।
8 – जिन महिलाओं को पीरियड कम आते हैं। वे सभी महिलाएं अशोकारिष्ट का सेवन लोहासव के साथ करें अवश्य लाभ होगा।
9 – खूनी बवासीर में भी अशोकारिष्ट अच्छा लाभ करता है।
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10 – अशोकारिष्ट मंदाग्नि और पेट की गर्मी, गैस, अपच आदि रोगों में भी एक उत्तम औषधि है।
11 – जिन पुरुषों को पित्त बढ़ने के कारण अंडकोष में सूजन आ गई है या कभी-कभी महिलाओं को भी सूजन आ जाती है तो वे सभी महिला और पुरुष इसका सेवन जरूर करें अवश्य लाभ होगा।
12 – वीर्य और पीरियड से रिलेटेड समस्याओं के समाधान के लिए अशोकारिष्ट को पतरंगासव के साथ लिया जाना चाहिए।
13 – स्वपनदोष और कमजोरी को दूर करने में भी अशोकारिष्ट एक उत्तम औषधि है क्योंकि इसमें अशोक की छाल जो कि आयरन से भरपूर और ठंडी होती है, चंदन, हरड़, बहेड़ा, आमला यदि ऐसे तत्व हैं जो उपरोक्त बीमारियों में रामबाण औषधि का काम करते हैं।
अशोकारिष्ट के नुकसान
यह पूर्णतया सुरक्षित और आयुर्वेदिक औषधि है। आयुर्वेद सार संग्रह नामक पुस्तक में भी इससे होने वाले किसी भी प्रकार के नुकसान का वर्णन नहीं मिलता। इसे आप बिना डॉक्टर की पर्ची के बाजार से बड़ी आसानी से खरीद सकते हैं।
विशेष नोट
अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें और आयुर्वेदिक चिकित्सक की देख रेख में ही सेवन करें ।
अशोकारिष्ट की मात्रा अनुपान और सेवन विधि
30 से 40ml तक की मात्रा सुबह-शाम खाने के बाद समान मात्रा में जल मिलाकर ली जा सकती है। यह एक सुरक्षित दवा है, इसको आप लगातार 3 महीने से लेकर अगर रोग बहुत ज्यादा पुराना है, तो 1 साल तक भी लगातार लिया जा सकता है।
अशोकारिष्ट की कीमत
बैद्यनाथ अशोकारिष्ट की कीमत 450 ml की बोतल 115 रुपए है।
कीमतों में लोकैशन के आधार पर अंतर हो सकता है।
यह जानकारी आयुर्वेद सार संग्रह नामक पुस्तक से ली गई है।